एक व्यक्ति है कवच में जंग लड़ने को तैयार, दूसरे अनजान खामियाजा भुगतने को तैयार… दुश्मन होता है दूर, चेहरा अजनबी दूसरे ठौर से, लेकिन निकाली जाती है दुश्मनी किसी और से… –Kaushal Kishore • @wordpress
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तादाद कभी भी हक़ का मेयार नहीं होती; न ही यह समझदारी की दलील होती है। अगर हज़ार लोग एक ही जैसे माहौल में रह कर एक बात पर जमा हैं, तो उनकी गिनती एक ही रहेगी। गिनती तब बढ़ेगी जब एक इंसान एक मुख़्तलिफ़ माहौल में रह कर उसी बात पर जमा हो। माहौल का फ़र्क़ जितना वाज़ेह होगा, गिनती उसी फ़ैक्टर से कम या ज़्यादा बढ़ेगी। मगर फिर भी तादाद हक़ का मेयार नहीं होगी। - पता नहीं मेरा यह निष्कर्ष तथ्यात्मक रूप से सही है या नहीं। इस पर पुनर्विचार किया जा सकता है।
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मैं मेरा मेरी फ़ोटो मेरा फ़ोन मेरी कार मेरा घर मेरा बेटा मेरा ख़ानदान मेरी बिरादरी मेरा मोहल्ला मेरा गाँव मेरा शहर मेरा देश . . . यही लोग आला दरजे के बेवक़ूफ़ हैं। अल्लाह ने इनको पूरी ज़मीन, पूरी इंसानियत, पूरा ब्रह्मंड दिया, लेकिन लालच ने इन्हें बड़ा लेने के बजाय छोटे में जकड़ दिया। जब यह मरेंगे तो इनको पता चलेगा कि मेरा जिस्म भी मेरा नहीं था, बल्कि अल्लाह का था।